उज्जैन । उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव ने सोमवार 29 मई को शिप्रा परिक्रमा प्रारम्भ होने के पूर्व रामघाट पर पावन शिप्रा नदी का पूजन-अर्चन किया। पूजन-अर्चन के दौरान सन्त श्री विवेकजी महाराज, महापौर श्री मुकेश टटवाल, जिला पंचायत सदस्य श्री शोभाराम मालवीय, सर्वश्री विवेक जोशी, अशोक प्रजापत, जगदीश पांचाल, संजय अग्रवाल, अनिल जैन कालूहेड़ा, परेश कुलकर्णी, राजेश कुशवाह, नरेश शर्मा, विजय चौधरी, मुकेश यादव आदि उपस्थित थे। पूजन-अर्चन के पश्चात उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव ने शिप्रा परिक्रमा का ध्वज लहराकर शिप्रा तीर्थ परिक्रमा का शुभारम्भ किया। इस दौरान सैकड़ों महिला-पुरूष उपस्थित थे।
धार्मिक नगरी उज्जयिनी में श्रेष्ठ पावन नगरी में गंगा दशहरे के पावन पर्व पर युवा सन्त श्री विवेकजी महाराज के सान्निध्य एवं उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव के संयोजन में शिप्रा तीर्थ परिक्रमा सोमवार 29 मई को रामघाट से प्रारम्भ हुई। युवा सन्त श्री विवेकजी महाराज शिप्रा तीर्थ परिक्रमा के प्रारम्भ से लेकर समापन तक साथ रहेंगे। मंगलवार 30 मई को समापन अवसर पर पूर्व मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय भी उपस्थित रहेंगे। शिप्रा तीर्थ परिक्रमा शिप्रा लोक संस्कृति समिति के द्वारा सम्पन्न होगी। शिप्रा तीर्थ परिक्रमा के अवसर पर पावन शिप्रा नदी में चुनरी अर्पण एवं भजन सन्ध्या का आयोजन होगा। समापन कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध भजन गायक श्री अजय शर्मा एवं गायिका सविता मिश्रा की भजन सन्ध्या होगी। इस अवसर पर डॉ.मोहन यादव ने आम श्रद्धालुओं से कहा है कि समस्त तीर्थों में श्रेष्ठ पावन शिप्रा नदी के जल में आचमन एवं स्नान करने से पुण्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
उज्जयिनी वह धरा है, जो कालजयी है। भगवान श्री महाकाल ने स्वयंभू होकर उज्जयिनी को जीवन्त किया है और इसी उज्जयिनी के तट पर मां शिप्रा नदी बहती है, जिसके जल से उज्जयिनी क्षेत्र को पवित्र किया। पुण्य सलीला शिप्रा नदी के घाटों पर आध्यात्म, संस्कृति, विज्ञान, सन्यास के साथ-साथ जहां इतिहास में स्वयं का उत्थान पाया, उसका नाम शिप्रा है। शिप्रा नदी भारत की केवल एक पवित्र नदी ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण इतिहास का वह कालखण्ड है, जिसमें भारत का स्वर्णिम युग निकलकर आया। शिप्रा परिक्रमा उस खोये हुए बल को पुन: प्राप्त करने का मार्ग भी है, जिसको पिछले कुछ वर्षों में इस राष्ट्र ने पुन: अर्जित करने का प्रयास किया है। हमारा सनातन इतिहास कहता है कि पुण्य सलीला शिप्रा नदी में भगवान कार्तिकेय ने अपने समस्त बलों को अर्पित कर दिया था। भगवान कार्तिकेय केवल भगवान शिव के पुत्र ही नहीं, बल्कि देवताओं के सेना के सेनापति भी हैं। जब हम शिप्रा परिक्रमा करते हैं तो भगवान कार्तिकेय के इस बल को भी प्राप्त करते हैं, जिससे यह राष्ट्र अपने उत्थान को प्राप्त होगा। शिप्रा केवल नदी नहीं भारत की वैभव गाथा है और भारत की वैभव गाथा को पुन: स्थापित करना, यही शिप्रा परिक्रमा का उद्देश्य है। मां शिप्रा नदी और महाकाल की धरती हम सबको आशीर्वाद प्रदान करती है। स्कंदपुराण के अनुसार जो व्यक्ति मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में स्नान के पश्चात महाकाल के दर्शन करता है, उसे मृत्यु का शोक नहीं होता। पुराणों की महिमा शिप्रा नदी के स्नान और आचमन पर जोर देती है। भगवान श्री राम भी शिप्रा में स्नान और आचमन करके ही भगवान श्री महाकाल के दर्शन किये थे और उन्होंने यहीं शिप्रा नदी रामघाट पर अपने पितरों का तर्पण भी किया था। शिप्रा नदी केवल दृश्य की नहीं, अपितु दर्शन की नदी है, इसलिये शिप्रा परिक्रमा भी केवल इस दृष्टि की परिक्रमा नहीं, अपितु भारत के दर्शन की परिक्रमा है, जिसे हम सनातन दर्शन कहते हैं। शिप्रा नदी के तट पर अंकपात तीर्थ है, जहां भगवान श्रीकृष्ण और श्री बलराम ने अपने गुरू की आज्ञा से उनको गुरू दीक्षा देने के लिये यमराज से भी युद्ध कर लेते हैं। जब शिप्रा परिक्रमा सान्दीपनि आश्रम के बाहर से निकलती है तो वह भारत के उस संस्कार को भी प्रणाम करती है, जहां गुरू की आज्ञा सर्वोपरि है। गुरू और शिष्य का अलंकरण सनातन कुल वंश की परम्परा का उदाहरण है।