यादों की चुभन बन के बरसात में बरसी हैं

उज्जैन। गज़लांजलि साहित्यिक संस्था की पावस-गोष्ठी का द्वितीय सत्र रूपांतरण हाल, दशहरा मैदान, उज्जैन पर हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। डॉ. श्रीकृष्ण जोशी की अध्यक्षता में चले इस संगोष्ठी में सत्येन्द्र नाटाणी द्वारा वर्षा ऋतु के आगमन की ख़ुशी को अपनी रचना ‘कारे-कारे बादल आये, दादुर मोर पपीहा गाये….के माध्यम से व्यक्त किया। राजेन्द्र शर्मा द्वार कविता ‘वर्षा की फुहार, उमंगों की बहार, लाती है अपार… की प्रस्तुति दी है। वहीं अशोक रक्ताले द्वारा ग़ज़ल ‘बरसात का मौसम हो मिलने की भी मुहलत हो…Ó पढ़ी। विजयसिंह गहलोत साकित द्वारा ग़ज़ल ‘यादों की चुभन बन के बरसात में बरसी हैं, ता-उम्र ग़म की बूँदें हर रात में बरसी है… सुनाकर सभी का दिल जीत लिया। कार्यकम में आशीष श्रीवास्तव अश्क़ द्वारा ग़ज़ल ‘जो भी करो सोच कर ही करो तुम, हर शब्द के गुप्त आशय बहुत हैं… सुनायी। संगोष्ठी में शैलेश मिश्र, डॉ. विजय सुखवानी, अवधेश वर्मा एवं प्रफुल्ल शुक्ला ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। डॉ. हरिमोहन बुधौलिया द्वारा डॉ. श्रीकृष्ण जोशी का सम्मान किया गया एवं संगोष्ठी की समीक्षा भी प्रस्तुत की गई।