उज्जैन, महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय,उज्जैन एवं भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् ,नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में वैदिक भाषा दर्शन एवं उच्चारण विज्ञान इस विषय पर 26 जुलाई से आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का समापन तृतीय दिवस दिनांक 28 जुलाई को सायं माधव सेवा न्यास सभागार में हुआ।कार्यक्रम के आदि में दीप प्रज्ज्वलित कर सरस्वती वन्दना एवं कुलगान प्रस्तुत किया गया। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. अखिलेश कुमार द्विवेदी ने अतिथियों का स्वागत कर संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया ।कार्यक्रम में मुख्यातिथि के रूप में प्रो. हरे राम त्रिपाठी, कुलपति ,कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय ,रामटेक नागपुर ने अपने वक्तव्य में भारतीय ज्ञान परंपरा की चर्चा करते हुए कहा कि वेदों में समस्त ब्रह्मांड का ज्ञान समाया हुआ है। तथा वेद भारत के अस्तित्व का प्रतीक है , अतः वैज्ञानिक वेदों पर सतत अनुसंधान कर रहे हैं । विशिष्टातिथि के रूम में पधारी रामटेक संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. उमा वैद्य ने कहा कि अनादि काल से ही भारत की शिक्षा प्रणाली अत्यंत समृद्ध रही हैं उन्होंने पाणिनीय शिक्षा , उच्चारण विज्ञान एवं वाणी के भेदों को विस्तार से प्रस्तुत किया । सारस्वतातिथी के रूप में उपस्थित प्रो.राम सलाही द्विवेदी ,लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भाषा के विषय पर इतनी सूक्ष्मता से विचार केवल भारत भूमि पर ही किया गया है , भारत ने ही दुनिया को भाषा दर्शन से परिचित कराया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो.विजय कुमार सी.जी माननीय कुलपति महर्षि पाणिनि संस्कृत वैदिक विश्वविद्यालय ने की उन्होंने संगोष्ठी के सफल आयोजन हेतु शुभकामनाएं प्रदान करते हुए कहा कि उज्जैन में आयोजित इस वैचारिक महाकुंभ में व्याकरण दर्शन एवं उच्चारण विज्ञान आदि विषय के ऊपर जो मंथन हुआ है उससे निश्चित ही एक नूतन मार्ग प्रशस्त होगा। संस्कृत व्याकरण की वैज्ञानिकता के कारण ही आज भी संस्कृत अत्यंत परिष्कृत रूप से बोली जाती है। व्याकरणशास्त्र भी एक दर्शन ही है, आधुनिक भाषा विज्ञान शास्त्र में चार प्रकार की प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा के उच्चारण विज्ञान को हजारों वर्षों पूर्व का बताया। उच्चारण की शुद्धता और भाषा के सुव्यवथित प्रयोग व संप्रेषण के लिए कुलपति जी ने शिक्षा ग्रंथ के अध्ययन को अनिवार्य बताया। समापन सत्र का संचालन वेद विभाग के प्राध्यापक डॉ. संकल्प मिश्र तथा आभार प्रदर्शन विभाग समन्वयक डॉ. तुलसीदास परौहा ने किया । इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में विशिष्ट विद्वानों के साथ ही शताधिक शोधार्थियों ने अपने गुणवत्तापूर्ण शोध पत्रों का वाचन किया देश के
12 प्रांतों उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, बंगाल, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र हिमाचल प्रदेश ,उत्तराखंड के विद्वानों ने संगोष्ठी में सहभागिता की।शोधार्थियों ने संगोष्ठी की सफलता विषयक अपने अनुभव भी साझा किए। समापन समारोह में प्रो.इला घोष जबलपुर डॉ.पूजा व्यास प्रो.तुलसीदास परौहा, डॉ.सदानंद त्रिपाठी डॉ. पीयूष त्रिपाठी , डॉ. हिम्मत लाल शर्मा , डॉ. यस शर्मा उज्जैन डॉ. एस.के. नारायण केरल अमिताभ शुक्ल डॉ. डॉ.अजय राठी , डॉ.अनिल मुवेल एवं विश्वविद्यालय के आचार्य एवं छात्र उपस्थित रहे। कल्याण मंत्र के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।