उज्जैन। मानस की चौपाइयों में तुलसीदासजी ने इतना रस भर दिया है कि जिसको मानस में रस आ जाता है, उसे कुछ और अच्छा लगता ही नहीं है। जितना आनंद श्रीराम कथा में है उतना आनंद किसी और में नहीं है। भगवान राम कथा की रचना तो शिवजी की रचना है। जो शिव की रचना होगी, उसमें आनंद नहीं आएगा तो कहां जाएगा।
यह बात महाकाल मैदान स्थित भारत माता मंदिर में श्री बलराम सत्संग मंडल ट्रस्ट जयपुर द्वारा आयोजित श्रीराम कथा के अंतिम दिन संत मुरलीधर महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति के जीवन में विकार निकल जाते हैं, तब उसे आनंद आता है। यदि पूजा नहीं कर पाते, माला नहीं जप सकते तो सिर्फ प्रभु से प्रेम करो। भगवान को याद करके रोना सहज नहीं है। अंतकरण से याद करना पड़ता है। संसार की व्याधियों से दुखी होकर रोना अलग बात है और प्रभु के प्रेम में पड़कर रोना अलग बात है। जब हमारी इच्छा पूरी नहीं होती है तो हम रोते हैं। यदि हम ईश्वर को याद करके रोए तो जीवन धन्य हो जाता है। निरंतर कथा सुनने से प्रभु के चरणों में प्रीति होती है। मन के विकार निकल जाते हैं। श्रीरामकथा के अंतिम दिन संतश्री मुरलीधर महाराज ने आयोजकों का शाल ओढ़ाकर सम्मान किया। आभार अध्यक्ष कमलेश खंडेलवाल ने माना।