संस्था सरल काव्यांजलि की मासिक गोष्ठी आयोजित

उज्जैन। शंखनाद है हिन्दी, इसे गूंजना होगा/कल्पवृक्ष है हिन्दी इसे झूमना होगा संस्था सचिव, कवि मानसिंह शरद ने जब सरल काव्यांजलि की मासिक गोष्ठी में यह पंक्तियाँ पढ़ीं तो माहौल हिन्दीमय हो गया। जानकारी देते हुए सरल काव्यांजलि संस्था संरक्षक, ख्यात साहित्यकार, डा. पुष्पा चौरसिया ने बताया कि क्लब फनकार, राजस्व कॉलोनी में आयोजित इस गोष्ठी की अध्यक्षता ख्यात व्यंग्यकार राजेंद्र देवधरे दर्पण ने की। कार्यक्रम के अतिथि सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश पुरुषोत्तम भट्ट एवं जबलपुर की साहित्यकार श्रीमती मीना भट्ट (पूर्व जिला जज एवं पूर्व चेयर पर्सन, जबलपुर डिविजनल विजिलेंस कमेटी) थे। प्रारम्भ में संस्था के वरिष्ठ सदस्य स्व. के.एन. शर्मा अकेला के आकस्मिक निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उनको श्रद्धाञ्जलि दी गयी। सन्तोष सुपेकर ने स्व. अकेला जी की गज़ल का वाचन किया।
रामचन्द्र धर्मदासानी ने लघुकथा, रिश्तों का ताना बाना डॉ. नेत्रा रावणकर ने घोंसला कविता का पाठ किया। श्रीमती माया बधेका ने सुनो ना केशव/एक कंस कितने कंस आ गए/एक रावण गया कितने रावण आ गए सुनाई, सन्तोष सुपेकर ने श्राद्ध पक्ष के अवसर पर स्वर्गीय माँ की स्मृति में कविता ये भी सुनाई। वर्षा गर्ग (मुंबई) की लघुकथा विरासत का ऑडियो सुनाया गया।
अपने अतिथि उद्बोधन में श्रीमती मीना भट्ट ने संस्था की प्रशंसा की और गज़ल- हमनशी हमनवा दिलदार हुआ करते है /इश्क के वो भी तलबगार हुआ करते हैं सुनाई।
पुरुषोत्तम भट्ट ने भगत सिंह की पूज्य माताजी द्वारा कहा गया एक कथन -सरल जी के ग्रंथो को जब मैं अपनी गोद में लेती हूँ तो ऐसा लगता है जैसे भगत सिंह मेरी गोद में खेल रहा है उद्धृत किया। डॉ. रफीक नागौरी ने खानाबदोश लोगों की दुनिया अजीब है/ सर पे उठाए घर को सफ़र पे निकल पड़े / बज़्मे सुखन से ऐसी गज़ल पढ़ो रफ़ीक/ कि जो भी सुने उसका कलेजा निकल पड़े, आशीष श्रीवास्तव अश्क ने यही बस रह गया अब रोजो शब/ लेटकर पंखे को चलते देखना, वी.एस. गहलोत साकित उज्जैनी ने गम भुलाना आ गया/ एक अरसे से दिल में साकित के रोशन रहे / अरमां के जलते चिरागों को बुझाना आ गया प्रस्तुत की। धनसिंह चौहान ने भुट्टे पर आधारित रोचक पंक्तियाँ पढ़ीं।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में राजेंद्र देवधरे दर्पण ने वरिष्ठ सदस्या श्रीमती माया बदेका की कृति म्हारी संजा की सारगर्भित समीक्षा पढ़ी।
श्रोताओं की रोचकता बढ़ाने हेतु कार्यक्रम के मध्य मानसिंह शरद द्वारा हिंदी प्रश्न मंच आयोजित किया गया जिसके विजेता रहे आशीष श्रीवास्तव अश्क और महेंद्र सिंह भदोरिया।
संस्था की परंपरा अनुसार श्रीयुत् श्रीकृष्ण सरल जी की कविता बलिदान एक दिन अन्यायों को खाता है का वाचन श्रीमती माया बधेका ने किया और इस माह के जन्म दिवस वाले सदस्यों – डॉ. संजय नागर, माया बधेका, हेमन्त भोपाले एवं श्रीमती वर्षा गर्ग (मुंबई निवासी का ऑन लाइन) का स्वागत हुआ।
प्रारम्भ में सरस्वती वंदना आशीष श्रीवास्तव अश्क ने प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत अध्यक्ष डॉ. संजय नागर, प्रदीप सरल, डॉ. प्रणव नागर, मयूना बदेका, मोरेश्वर राव, मालवेंद्र बदेका, अशोक रावणकर और श्रीमती सुमन नागर ने किया। संचालन डॉ. नेत्रा रावणकर ने किया। आभार प्रदर्शन महासचिव सन्तोष सुपेकर ने किया।