उज्जैन, इस समय के महान समाज सुधारक, देश, समाज और परिवार का भारी नुकसान करने वाली चीज को डंके की चोट पर कहने, उससे बचने का आसान उपाय भी बताने वाले, आत्मा के कल्याण, जीते जी मुक्ति मोक्ष प्राप्त करने और देवी-देवताओं के दर्शन का दुर्लभ रास्ता नामदान देने वाले इस समय के पूरे समरथ दुःखहर्ता सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन में दिए संदेश में बताया कि यह मनुष्य शरीर किराये का मकान है जो केवल खाने-पीने, मौज-मस्ती करने के लिए नहीं मिला। असली उद्देश्य जीते जी प्रभु को पाना है। मरने के बाद जो काम आवे वह काम करना और वह दौलत प्राप्त करनी चाहिए। प्रभु का जगाया हुआ नाम जयगुरुदेव, संकट में मददगार है। मौत के समय पीड़ा इसी नाम को बोलने से कम होगी। दुःख, तकलीफ, बीमारी में राहत पाने के लिए शाकाहारी, सदाचारी, नशा मुक्त रहकर सुबह-शाम, रोज रात को सोने से पहले भाव के साथ बराबर कुछ दिन जयगुरुदेव नामध्वनि बोलने से फायदा दिखने लगेगा। आजमाइश करके देख लीजिए। ऐसे बोलना रहेगा- जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयजय गुरुदेव। दुधमुंहे बच्चे को मां के दूध के समान अभी लोगों को सतसंग की जरूरत है। इस समय लोगों के बिगड़ने, खान-पान खराब होने, भगवान से दूर होने, खून का रिश्ता तार-तार कर देने का क्या कारण है? बच्चों, परिवार वालों को सतसंग नहीं मिल रहा है।
*इन वादों के कारण लोग बारूद के ढेर पर खड़े हो रहे हैं*
चार वर्ण शुरू में बनाया गया था- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। लेकिन अब इसी में बहुत शाखाएं हो गई। इस पर एक-दूसरे से द्वंद लड़ाई हो रही, जान के लाले पड़ रहे हैं। यह जहर सब जगह फैला हुआ है, चाहे दफ्तर हो, सामाजिक या राजनीतिक संगठन हो, देश-प्रदेश की बात हो, सब जगह जातिवाद भाईवाद, भतीजावाद, कौमवाद, भाषावाद आदि तमाम वाद हो गए। जब यह वाद पैदा हुए तो उसी से आतंकवाद, नक्सलवाद की शाखा निकली। ये जो वाद बढ़ते चले जा रहै हैं, एक तरह से बारूद के ढेर पर खड़ा कर दे रहै है। बारूद के ढेर पर अगर कोई खड़ा हो जाए और कहे कि मैं सुरक्षित हूं तो कैसे माना जाए।
*पुराने पैटर्न में लोगों को आना पड़ेगा*
पहले लोग बैल से खेती करते, गोबर की खाद डालते, बगैर दवा के बढ़िया अन्न पैदा करते थे जिससे शरीर स्वस्थ रहता था। एक समय ऐसा आएगा की पुराने पैटर्न पर लोगों को आना पड़ेगा, पुरानी चीजों को अपनाना पड़ेगा। जो भारतीय संस्कृति को खत्म करने में लोग लगे हुए हैं, वह खत्म नहीं हो सकती है। भारतीय संस्कृति रहेगी, धर्म रहेगा। भारत से धर्म ऐसे खत्म होने वाला नहीं है। कोई कितना भी कोशिश प्रयास कर ले कि भारत के नौजवानों को, लोगों को बिगाड़ देंगे, उनका खान-पान, चरित्र खराब कर देंगे, वह हमारी मुट्ठी में हो जाएंगे, ऐसा नहीं हो सकता है। ऐसा कब नहीं होगा? जब आप सबके अंदर चेतनता आ जाएगी, जब बराबर सतसंग सुनते रहोगे, जब जानकारी हो जाएगी कि क्या अच्छा, क्या बुरा है और उसी तरह अपने परिवार को बनाओगे, प्रचार-प्रसार कर दूसरों को सिखाओगे तब यह संभव होगा।
*भारत से सूखती चली जा रही धर्म की बेल कैसे हरी होगी*
आदमी के बनाने से अगर व्यवस्था नहीं बनेगी तब तो कुदरत अपने हाथ में लेगी। इसी धरती पर संत महात्मा महापुरुष रहे हैं, कोई न कोई रहेगा, वह संभाल करेगा। इसलिए आप थोड़ा सा अगर एक्टिव हो जाओ, थोड़ी जागृति आ जाए, गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव जी जो बातें कह करके गए, जो अभी आपको बताई जा रही हैं, उसके अनुसार अपने को ढाल लो, अपने बच्चों, पड़ोसियों रिश्तेदारों को वैसा बना लो, जिससे व्यापारिक आदि संबंध है, उनसे संपर्क करके उन्हें वैसा बना लो तब तो कोई असर नहीं होगा। वह पुरानी चीज फिर आ जायेगी। धर्म की जो बेल सूख रही है फिर हरी हो जाएगी क्योंकि जड़ खत्म होने वाला नहीं है।