नज़रों पर पहरे लगा बैठ गयी है शाम : अशोक रक्ताले

उज्जैन। डॉ. श्रीकृष्ण जोशी की अध्यक्षता में ग़ज़लांजलि की काव्य-गोष्ठी आयोजित की गई। दीप प्रज्वलन पश्चात गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए अवधेश वर्मा नीर द्वारा मानव लक्ष्य को केन्द्रित कर मानव जीवन मिलता प्रभु से, सबको कोई उद्देश्य है पढ़ी गयी। अशोक रक्ताले ने सामयिक दोहे पढ़े नज़रों पर पहरा लगा बैठ गयी है शाम, समय हुआ है धुन्ध का, होने लगा जुकाम। गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए विनोद काबरा ने कुछ क्षणिकाएँ पढ़ीं न हो कभी मिथ्या अभिमान, बुद्धिमानी के साथ रहे सावधान। डॉ. आर.पी. तिवारी ने भगवान् श्रीराम के होने के महत्त्व पर अपनी गीत रचना पढ़ी अकथ अपरिमित प्रेम भारत और लखन-सा त्याग कहाँ, यह सब संभव सिर्फ वहीं पर बसते हैं श्रीराम जहाँ। दिलीप जैन ने ग़ज़ल जब थी आशा मिली निराशा, जीवन कैसा खेल तमाशा सुनायी तो कवि सत्यनारायण सत्येन्द्र ने अपनी लघु रचना हर व्यक्ति का अपना संसार होता है, उसी में वह जीता है उसी में मरता है पढ़ी। डॉ. अक्षय चवरे ने जीवन एक कहानी है युग-युग से जिसकी एक कथा हँसते होठों पसे भरी व्यथा कविता पढ़ी। डॉ. अखिलेश चौरे ने ग़ज़ल अरसे बाद मिले हो भाई, चुप न रहो कुछ तो बोलो सुनायी तो वही शायर आरिफ़ अफ़ज़ल ने कुछ अशआर सुनाए अजीब सा उसे कोई मर्ज हो गया है, अच्छा भला शख्स खुदगज़र् हो गया है। आज की गोष्ठी के समापन पर डॉ. विजय सुखवानी ने आभार व्यक्त किया।