ग्रामीण विकास और वर्तमान आर्थिक नीतियों के मध्य समन्वय का अभाव

उज्जैन। अर्थशास्त्र अध्ययनशाला द्वारा 25 फरवरी को मध्यप्रदेश आर्थिक परिषद की बैठक एवं दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन ग्रामीण विकास के परिप्रेक्ष्य में किया गया। इस अवसर पर एमपीईए के अध्यक्ष प्रोफेसर कन्हैया आहूजा ने सम्बोधित करते हुए कहा कि इस प्रकार के राष्ट्रीय सेमिनार के माध्यम से मध्यप्रदेश के विकास की संरचनात्मक कमजोरियों को दूर किया जा सकता है, क्योंकि मध्यप्रदेश की आर्थिक नीतियों का प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर भी पड़ता है।
राज्य नीति आयोग के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी ने बताया कि मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर विशिष्ट प्रभाव डाल सकता है। मध्यप्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि आर्थिक नीतियों के मॉडल को प्रभावशाली तरीके से अपनाया जाना चाहिए। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तथा कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा के अनुसार आर्थिक विकास का वितरण समान रूप से किया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो इसके परिणाम स्वरूप ग्रामीण विकास भी बुरी तरह प्रभावित होता है। आज के समय में ग्रामीण विकास एवं वर्तमान आर्थिक नीतियों के मध्य समन्वय नहीं पाया जाता है और ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों से कोई संवाद नहीं किया जाता है। इसलिए धीरे-धीरे कृषि तथा उसके सहायक व्यवसायों की दुर्गति हो रही है। अत: यह आवश्यक हो गया है कि वर्तमान समय में आर्थिक प्रगति को मानवीय मूल्यों के आधार पर निश्चित किया जाए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय जी ने कहा कि कृषि के क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैव उर्वरकों का उपयोग किया जाना चाहिए। तब ही सतत ग्रामीण विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।
इस दो दिवसीय अधिवेशन एवं राष्ट्रीय सेमिनार स्वस्तिवाचन डॉ. मुसलगांवकर ने किया। स्वागत भाषण डॉ. एस.के. मिश्रा ने दिया। संचालन डॉ. निवेदिता ने किया। इस अवसर पर प्रोफेसर शैलेष चौबे, प्रोफेसर गणेश कावड़िया, प्रोफेसर कन्हैयालाल आहूजा, प्रोफेसर केवल जैन, प्रोफेसर जयप्रकाश मिश्र, प्रोफेसर निखिल जोशी, डॉ. नीता तपन आदि विशेष रूप से उपस्थित रहे।