उज्जैन, दिनांक 14-05-2022 को महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन के ज्योतिष एवं ज्योतिर्विज्ञान विभाग द्वारा *मन्दिरस्थापत्यम्* विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। मंगलाचरण श्री शिवानन्द मिश्र एवं स्वागत भाषण विभागी आचार्य एवं योग विभागाध्यक्ष डॉ उपेन्द्र भार्गव द्वारा प्रस्तुत किया गया।
कार्यक्रम के अध्यक्ष माननीय कुलपति महोदय प्रो.विजय कुमार सी.जी. ने कहा कि हमारे जीवन का प्रमुख भाग हैं देवालय। वैदिक ज्ञान ही स्थापत्य का मूल है। उन्होंने कहा कि मंदिर स्थापत्य भारतीय कला एवं विज्ञान का परिचायक है, जिसमें बजने वाले वाद्य यंत्र भी वैज्ञानिकता को सिद्ध करते हैं।
मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित श्री लालबहादुर शास्त्री केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के वास्तुशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो.अशोक थपलियाल ने मंदिर स्थापत्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि मानव शरीर की तरह मंदिर भी सांगोपांग लक्षणों से युक्त रहता है। मंदिर एक शरीर है एवं उसमें स्थित प्रतिमा उसकी आत्मा है। उन्होंने कहा कि मंदिर स्थापत्य भारतीय उत्सवों से सीधा सम्बन्ध स्थापित करता है। मंदिर में बनने वाला मण्डप सामान्य जनों के एकत्र होने का स्थान है, जो कि एकता का परिचायक भी है। मंदिर की नागर, द्राविड़ एवं वेसर शैली को स्पष्ट करते हुए उन्होंने उत्तरी भारत से, उड़ीसा के मंदिर एवं दक्षिण के रामेश्वरम मंदिर का उदाहरण प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में संस्कृत शिक्षण प्रशिक्षण ज्ञान विज्ञान संवर्धन केंद्र के निदेशक डॉ.मनमोहन उपाध्याय, वेद एवं व्याकरण विभाग के अध्यक्ष डॉ.अखिलेशकुमार द्विवेदी, शिक्षाशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ.संकल्प मिश्र अन्य आचार्यगण,छात्र एवं सम्पूर्ण भारत के विविध प्रान्तों से श्रोतागण जुड़े रहे। कार्यक्रम का संचालन विभाग के आचार्य डॉ.योगेश शर्मा एवं धन्यवाद ज्ञापन विभाग के अध्यक्ष डॉ शुभम् शर्मा का रहा।