उज्जैन, यूक्रेन के कैलेण्डर में भी वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुरूप सूर्य, चन्द्र, ऋतु एवं कृषि को आधार माना जाता है। वैदिक पञ्चाङ्ग और यूक्रेन का कैलेण्डर दोनों ही रिदम आफ नेचर पर आधारित हैं। विश्व की एकता के लिए सम्पूर्ण विश्व का एक कलैंडर निर्धारित होना चाहिए। सम्पूर्ण ज्ञान का स्रोत वेद है। यह बात विक्रमोत्सव 2025 अंतर्गत “भारत में संवत् परम्परा वैशिष्ट्य एवं प्रमाण” विषय पर आधारित एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय शोध सङ्गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि यूक्रेन देश से पधारी गोरदाना निस ने कही। संगोष्ठी का आयोजन महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ द्वारा ज्योतिष विभाग, महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन की सहभागिता में किया गया।
मुख्यातिथि, तमिलनाडु से पधारे प्रो. मंगलम श्रीनिवास श्रीकांत ने तमिळ के तुरुवल्लुवर संवत् के वैशिष्ट्य का वर्णन करते हुए बताया कि अनेक संवत्सरों का प्रचलन काल अनुसार आरम्भ हुआ था। प्रत्येक संवत्सर का अपना महत्त्व एवं इतिहास है।अनेक संवत्सरों के प्रयोग के बाद भी विक्रम संवत्सर सम्पूर्ण देश में प्रचलन में है।
सारस्वत अतिथि, प्रो.केदार नारायण जोशी,पूर्व आचार्य,विक्रम विवि, उज्जैन ने कहा कि हमारे देश में पच्चीस से अधिक संवत्सरों की स्वीकार्यता है जिनमें विक्रम संवत्सर भारत के साथ अन्य देशों में भी प्रचलन में है। जो अधिक सूक्ष्म एवं प्रामाणिक है। अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलगुरु प्रो विजयकुमार सी.जी. ने कहा कि जब नेपाल में विक्रम संवत् मान्य है, तो भारत में ऐसा क्यों सम्भव नहीं है। क्यों आज भी हमारा प्रचलित कैलेण्डर ग्रेगोरियन ही है। स्वतन्त्रता के इतने वर्ष पश्चात् भी कोई भारतीय पंचांग शासन और सामाजिक स्तर पर बहुप्रचलित नहीं हो पा रहा। उन्होंने मलयालम संवत् के वैशिष्ट्य को उद्घाटित करते हुए भारतीय काल चिंतन को पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति से युक्त कहा। उन्होने भारत को संवत समृद्ध देश बताया।
प्रास्ताविक एवं अथिति परिचय, संगोष्ठी संयोजक एवं ज्योतिष विभाग अध्यक्ष डॉ.उपेंद्र भार्गव ने तथा आभार, कुलसचिव, प्रो.दिलीप सोनी ने माना। संचालन डॉ.अविनाश मिश्र डॉ.योगेश कुमार डॉ.मृत्युंजय तिवारी ने किया। कार्यक्रम में डॉ. शुभम शर्मा, ज्योतिर्विज्ञान विभाग प्रमुख, डॉ. सुभाष चन्द्र मिश्र (जयपुर), कैलाशपति नायक (उज्जैन), डॉ. अभिषेक पाण्डेय (इन्दौर), प्रो. अशोक थपलियाल (दिल्ली), डॉ. खेमचंद्र भूर्तेल (नेपाल), डॉ. चेतन पंड्या (बड़ोदरा), डॉ. गणेश त्रिपाठी (भोपाल), डॉ. प्रवीण कुमार दुबे (दतिया), पं. मदन व्यास (उज्जैन) तथा नेपाल, यूक्रेन आदि देशों के शिक्षाविद् सहित देश के विभिन्न प्रान्तों से पधारे विद्वान, सामाजिक, छात्र तथा शोधार्थी उपस्थित थे।