उज्जैन, शरद पूर्णिमा के अवसर पर शासकीय धनवंतरी चिकित्सा आयुर्वेद महाविद्यालय के डॉ. प्रकाश जोशी और इंदिरा नगर सहयोगी मंडल के सौजन्य से दमा रोगियों के लिए 28वां नि:शुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन सोमवार 6 अक्टूबर को सायंकाल 5:30 बजे से इंदिरानगर १७२, एलआईजी द्वितीय, टेम्पो चौराहे पर आयोजित किया जाएगा।
शिविर संयोजक डॉ. प्रकाश जोशी ने बताया कि चिकित्सा शिविर की विशेषता है कि रोगी को रात्रिभर शिविर स्थल पर रात्रि जागरण करना अनिवार्य होता है। प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में ४ बजे औषधियुक्त खीर का वितरण किया जाता है। तत्पश्चात प्रात: ६ बजे से कर्णवेधन चिकित्सा प्रारंभ की जाती है। शहर में यह चिकित्सा शिविर लगातार कई वर्षों से आयोजित किया जाता है। शिविर में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार एवं अन्य प्रदेशों के रोगी चिकित्सा का लाभ ले चुके हैं। असुविधा से बचने के लिए उपचार पूर्व रोगी अपना पंजीयन फोन नं. 6261010149 पर या शिविर स्थल पर करवा सकते हैं।
श्वास रोग चिकित्सा में शरद पूर्णिमा का है विशेष महत्व
दमा-दम के साथ जाता है यह एक प्रचलित लोकोत्ति है। काफी हद तक यह सही भी है। लेकिन उचित आहार-विहार एवं युक्तिपूर्वक की हुई चिकित्सा से इसे ठीक भी किया जा सकता है। आयुर्वेद में उचित आहार-विहार के लिये ऋतुचर्या का विधान है। आर्युवेद में ऋषियों में मानव जगत के हित व मार्गदर्शन के लिये बहुत ही प्रमाणिक और वैज्ञानिक ढंग से स्वास्थ्य के नियमों को दृष्टिगत रखते हुए काल विभाजन किया है। ऋतुकाल के अनुसार उचित आहार-विहार करने एवं अनुचित आहर विहार न करने का भी वर्णन है। अँग्रेजी में एक कहावत है ‘प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर’ यानी इलाज कराने की अपेक्षा बीमार होने से बचना अच्छा है। उचित आहार-विहार का पालन कर न सिर्फ रोगों से बचा जा सकता है। आयुर्वेद में शिशिर, बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, ऋतु में पड़ने वाली शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है।
भारतीय कालगणना के अनुसार यह ऋतु आश्विन व कार्तिक माह में अँग्रेजी माह के अनुसार सितंबर, अक्टूबर, नवंबर में होती है। इस समय सूर्यबल क्षीणतर एवं चन्द्रबल पूर्णतर होता है। शरद ऋतु में पित्त का प्रकोप व वात का शमन होता है।
हमारे शरीर में फेफड़ों को वायु पहुँचाने वाली नलियाँ छोटी-छोटी मांसपेशियों द्वारा ढँकी रहती हैं। इन मांसपेशियों में आक्षेप होने के कारण साँस में तकलीफ होती है एवं गला आवाज करने लगता है इसे श्वास रोग या दमा कहते है । जिस तरह दौडने से जल्दी जल्दी सांस आती है उसी प्रकार यदि आराम से बैठने पर सांस लेना पडे तो उसे दमा रोग कहते है। यह एक एलर्जिक रोग है। एलर्जी अर्थात निर्दोष पदार्थो के प्रति शरीर की विरोधी प्रतिक्रिया अधिकांश लोगों को धूल,फफूंद, मांस, मछली आदि के संपर्क में आने से तकलीफ होने लगती है।
श्वास रोग के कारण
विदाही (जलन पैदा करने वाले) खाद्य पदार्थ, कब्जकारक पदार्थ, कफकारक पदार्थों के खाने से तथा शीत पेयों से, शीतल भोजन करने से, शीतल स्थान में रहने से, धूल एवं धुएँ के मुँह एवं नाक में जाने से, शक्ति से अधिक कार्य करने अथवा अधिक बोझ उठाने से, अधिक पैदल यात्रा करने से श्वासरोग हो जाता है। जब वायु कफ से मिल जाती है तब वह उस कफ से प्राण, अन्न एवं जल के मार्गों को रोक देती है। उस अवस्था में वायु स्वयं भी कफ के कारण चारों और घूम नहीं सकती । कफ के कारण वायु के अवरूद्ध होने से श्वास रोग (दमा) की उत्पत्ति होती है।
शरद पूर्णिमा के दिन चिकित्सा
वैदिक साहित्यों में चन्द्रमा को औषधियों का अधिपति कहा गया है। शरद ऋतु में चन्द्र बल पूर्णतर होता है। शरद पूर्णिमा के दिन श्वास रोग चिकित्सा में औषधियुक्त खीर के सेवन का विधान है। बाद में कर्णवेधन किया जाता है एवं रोगी को सारी रात जागरण कराया जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि इस प्रयोग से एक ही रात में दमे का रोग नष्ट हो जाता है।
औषधियुक्त खीर पान : यह भारतीय चिकित्सा पद्धति की अनूठी विधा है, जिसमें शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा की किरणों से सेवित विशेष औषधि का दूध में पाक कर प्रयोग कराए जाने से दम के साथ दमा जाने वाली लोकोक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगता है क्योंकि बहुतायत से शरद पूर्णिमा के दिन औषधियुक्त खीर पान से रोगी स्वस्थ होते देखे गए हैं।
कर्णवेधन का महत्व : मानव शरीर में होने वाली विभिन्न क्रियाएँ मस्तिष्क के नियंत्रण में होती है। मस्तिष्क इन क्रियाओं को नाड़ियों द्वारा संचालित करता है। इसमें से प्राणदा नाड़ी (वेगस नर्व) शरीर के विभिन्न अंगो के संचालन में अपना योगदान देती है। इसकी एक शाखा लेरिंग्स, ट्रेकिया तथा ब्रोंकायी एवं पल्मोनरी प्लक्सस में ब्रोंकियों संकुचन का कार्य करते हैं। प्राणदा नाड़ी की एक शाखा बाह्य कर्ण को जाकर संवेदना ग्रहण कराती है।