विदेशी फिल्मों में भी दिखी भारतीय संस्कृति की विरासत

उज्‍जैन, भारत उत्‍कर्ष, नवजागरण और वृहत्‍तर भारत की सांस्‍कृतिक चेतना पर एकाग्र *विक्रमोत्‍सव 2023 (विक्रम सम्‍वत् 2079)* अंतर्गत आईएफएफएएस पौराणिक फिल्मों का अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह के तीसरे दिन 14 फिल्मों को दिखाया गया। जिसमें कवि कालिदास (1959), जय महादेव (1955), सम्राट चन्‍द्रगुप्‍त (1958), वन वीक एंड अ डे, देट आर्केस्‍ट्रा विद द ब्रोकन इंस्‍ट्रुमेंट्स, स्‍कैफफोल्डिंग,राजस्थानी फिल्म राजा भरथरी, बंगला भाषा की वीरेश्‍वर विवेकानंद, महर्षि पाराशर, महर्षि चरक, इंडोनेशिया की सेसेपुह माजा पाहित, द एन्शियंट वर्ल्‍ड, प्रहलाद महाराज हरिदर्शन,
व एलेक्‍जेंडर नेवेस्‍की शमिल है।
दर्शकों से बातचीत करते हुए फ़िल्म फेस्टिवल के सहयोगी रमण ऋषि द्विवेदी ने कहा कि सामान्य तौर पर लोगों को लग रहा है कि ये ग्लैमर फ़िल्म फेस्टिवल की तरह अवार्ड देने वाला समारोह है लेकिन ऐसा नहीं है यह दुनिया की पौराणिक इतिहास, संस्कृति, पुरातत्व व सनातन विरासत पर केंद्रित फिल्मों को प्रदर्शित करने का मंच है। इसके प्रदर्शन से विश्व स्तर पर जो हजारों सालों से मौजूद ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति रही है या अपनाई जा रही है उसे जानने का मौका मिल रहा है। फिल्मों से यह साबित हो रहा है कि भारतीय सनातन संस्कृति की तरह ही अन्य देशों में सांस्कृतिक विरासत की एकरूपता दिखाई देती है।
उज्जैन के रहने वाले राजेश जैन का कहना है कि फ़िल्म फेस्टिवल में सालों पुरानी फिल्मों को दिखाया जा रहा है इसका प्रचार बड़े स्केल पर किया जाना चाहिए। इस समारोह से कॉलेज और स्कूलों के बच्चों को भी जोड़ना चाहिए।