भगवान महावीर की साधना का सही मार्ग सत्य साधना, सत्य से कराती है परिचित : अमृतसुंदर मसा

उज्जैन। भक्तामर स्त्रोत में भगवान के असीम ज्ञान का वर्णन है। 21वीं गाथा में आचार्य मानतुंग सूरी ने कहा कि मैंने कई देवी-देवताओं को देखा जो गुणों में कुछ कम थे पर आप सर्वगुण संपन्न हैं। आदिनाथ भगवान में पूरी श्रद्धा विश्वास होने पर संसार के दु:ख दर्द से मुक्ति का रास्ता बताया। सत्य साधना सत्य से परिचित कराती है। भगवान महावीर की साधना का मार्ग ही सही मार्ग है। वे सभी प्राणियों के पालक, पिता हैं। सर्व दु:खों से मुक्ति का मार्ग बताया। वे हमारे पिता के भी पिता हैं। तीर्थंकर परमात्मा से हमें वीतरागता का सुख मिलता है। 22वीं गाथा अनुसार इस संसार में स्त्रियां सौ-सौ पुत्रों को जन्म देती हैं पर आपके जैसे पुत्रों को जन्म देने वाली एक ही माता है। तारे कितने ही हैं और एक सूर्य रोशनी देता है, वह गजब है। रेगिस्तान में भी साधना के फूल खिला दे वही सर्वोपरि है। मरूदेवी माता ने हाथी के ओहदे पर ही शाश्वत सुखों को प्राप्त कर लिया। रोशनी कइयों में है पर पूर्व से उदय होने वाला सूर्य सर्वोपरि है। अपने पूर्व भाव का ज्ञान होना, आत्मा शरीर में भटक रही है उसे जानना, उत्पाद और च्यवन का ज्ञान होना जरूरी है। आश्रव और कर्म बंध क्षय का ध्यान होना जरूरी है। वर्तमान में सजगता से पूरा ध्यान रखना हमारे लिए जरूरी है। पूर्व को जानने से ही केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है- ये विचार उज्जैन शांतिनाथ भवन में अमृतसुंदरजी मसा ने धर्मसभा में व्यक्त किए। मुमुक्षिणी अंजलि राखेचा ने कहा कि एक हजार वर्षों से चली आ रही परंपरा में पूज्यों को हम नमन करते हैं। उनके शास्त्रों का स्वाध्याय करने से वैराग्य भावना आ जाती है। वे आगम शास्त्रों का सार तत्व बताते हैं जिनमें तीन स्वरूप-देह का स्वरूप, चारों गतियों का स्वरूप, संसार का स्वरूप बताए गए हैं। पार्श्वनाथ के 10 भव हुए जिनमें छठा वज्रनाभ के रूप में हुआ। किसान बीज बोता है और उसकी फसल आने पर उसमें से कुछ फिर से बोता है और कुछ बचा कर उपभोग कर लेता है। धर्म रूपी बीज को चक्रवर्ती वृद्धिमान करते हैं। चाहे हमारे पास कितना ही ऐश्वर्य सुख धर्म के प्रभाव से है। बाहरी सुविधाएं मोक्ष मार्ग तक ले जाने में कतई सहयोग नहीं करती। व्यापारी भी इसी विधि से अपना व्यवसाय करता है। लाभ का कुछ हिस्सा सुरक्षित कर लेता है और बाकी का उपयोग करता है। सुख सागर में रहते हुए चक्रवर्ती अपना आगे पीछे का पूरा ध्यान रखते हैं। सुख और सागर, दो शब्दों में गागर में सागर भर दिया गया है। सुख यानि अनुकूलता में समय कब बीत जाता पता ही नहीं चलता, जबकि दु:ख के पल काफी विलंब से धीरे-धीरे बीतते हैं। भंवर फूल को देख लेता है तो अन्य जगह उसकी नजर नहीं जाती। ऐसे ही सच्चा भक्त गुरु में ही सब कुछ देख लेता है। हमारी दृष्टि भी गुरु चरणों में होना चाहिए। उपदेश, देशना धर्म के शिरोमणि देते हैं व गुरु के सानिध्य में निमित्त से वैराग्य का उद्भव होता है और सत्ता का रस नीरस लगता है। गुरु के उपदेशानुसार सूर्य की विशेषता यह होती है कि सब पर रोशनी की किरणों से बिना पक्षपात समान कृपा बरसाता है। गुरु कथन वचन रूपी किरणों से भ्रम भागता है। जैसे-जैसे सूर्य उदय होता जाता, प्रकाश से अंधेरा भागता जाता है। ऐसे ही हम तन-मन के रोगों और भोगों के परिणाम का विचार कर रहे हैं। राग, अनुराग में परिवर्तित हो गया है। सत्य साधना मार्ग के अनुरागी बनते जा रहे हैं। संसार का न आदि है ना अंत है। भयंकर जंगल में घुसने के बाद बाहर निकलने का जिस तरह मार्ग नहीं नजर आता उसके विपरीत जन्म, मरण, बुढ़ापे के दु:ख का विचार कर वैराग्य की ओर बढ़ते जा रहे हैं। मुमुक्षु विकास चौपड़ा ने थॉमस एल्वा एडिसन के प्रसंग से शुरुआत की जिसने बल्ब की खोज की। शिष्य की योग्यता में कमी को गौण कर गुरु शिष्य की कमी को दूर कर पूर्णता प्रदान करते हुए निखारते-संवारते-संभालते हैं। एडिसन के जीवन में भी स्कूल में एक समय ऐसा आया कि शिक्षक ने उनकी माता को एक पर्ची लिखकर दी जिसको पढ़ कर उनकी आंखों में आंसू आ गए। फिर भी सभी समुचित सुविधाएं जुटा कर उन्हें आगे पढ़ाकर वैज्ञानिक बनाया गया और फिर एक दिन एडिसन के हाथ में वह पर्ची आ ही गई जिस पर यह लिखा था कि आपका बच्चा पढ़ने में कमजोर है, इसे आप घर पर ही रखिए। बेटे ने यह पर्ची पढ़कर अनुमान लगाया कि मां ने यह जानते हुए भी उसे हर सुविधा सरल-सहज रूप से सुलभ करवाई तो आज मैं इस काबिल हूं। समझदार और सही गुरु मिले तो अपनी जिंदगी में आमूल चूल परिवर्तन लाकर जीने योग्य बना देते है, ऐसा ही मेरे साथ मेरे गुरु के आशीर्वाद से है। इसके बाद सत्य साधना के प्राप्त लाभों का प्रदर्शन किया गया। सुश्रावक राजेंद्र कंकरेचा, विजय नारेलिया ने प्रवचन श्रवण से धर्म लाभ लेने का आग्रह किया है।