उज्जैन। जो कथा सुनने का आनंद सामने सुनने में आता है वह घर पर टीवी पर सुनने में नहीं आता। वह सभी तीर्थ है जहां भगवान के गुणों का गान होता है। जहां गाय विचरती है वह महातीर्थ है। भगवान स्वयं कहते हैं तीर्थ सभी मेरे ऑफिस हैं। गोशाला मेरा घर है। तप करने के लिए तीर्थ जाना पड़ता है। तीर्थ जाओगे तो त्याग करना पड़ेगा।
यह बात महाकाल मैदान स्थित भारत माता मंदिर में श्री बलराम सत्संग मंडल ट्रस्ट जयपुर द्वारा आयोजित श्रीराम कथा के सातवें दिन भरत मिलाप संवाद प्रसंग के दौरान संत मुरलीधर महाराज ने कही। संतश्री ने कहा कि त्याग करो तो शुरू-शुरू में अटपटा लगता है। जब मन वैराग्य हो गया और मन कथा में लग गया तो कथा के बिना रह नहीं सकते। जीवन का हर कर्म भगवान से जुड़ जाता है। कोई भगवान को सखा बनाता है, कोई पिता बनाता है, कोई पुत्र बनाता है। रिश्ता जोड़ें तो जुड़ जाता है। रिश्ता मन से जुड़ता है।
विश्वामित्रजी ने जब दशरथ से राम को मांगा तो दशरथजी मना करने लगे। रामजी चित्रकूट मंदाकिनी आए। पर्णकुटी बनाकर रहने लगे। रामजी चित्रकूट आकर रहते हैं। प्रेम वही है जिसके बिना अच्छा न लगे। अगर किसी से प्रेम होता है तो उससे मुख मोड़ा नहीं जाता। प्रेम तो बढ़ता ही रहता है। भक्ति का अगला स्वरूप है प्रेम। प्रभु के चरणों की भक्ति आती है यही प्रेम है। फिर कहीं दिल लगता नहीं। प्रभु से मिलने की तड़प हृदय में उत्पन्न होती है। व्याकुलता वही समझ सकता है जिसे प्रेम है। रामजी के जाने के बाद दशरथजी बार बार मुर्च्छित होते हैं। जैसे ही होश आता है, रामजी रामजी करते हैं फिर मुर्च्छित हो जाते हैं। अध्यक्ष कमलेश खंडेलवाल ने बताया कि गुरुवार को संतश्री हनुमान, सुग्रीव मिलाप कथा का वर्णन करेंगे। श्रीराम कथा के दौरान भजनों पर भक्तजन झूम रहे हैं।