आदरांजलि कार्यक्रम, सारी कलाएं एक-दूसरे की पूरक होती हैं : ब्रजेश कानूनगो

उज्जैन। कलाकार केवल एक विधा का रचनाकार नहीं होता। सारी कलाएं एक-दूसरे की पूरक होती हैं। हर कला के पीछे व्यक्ति की संवेदना, अनुभूति और विशिष्टता होती है। दृष्टि होती है, जिससे अभिव्यक्ति को माध्यम मिलता है। अभिव्यक्ति का माध्यम चाहे शब्द हों, स्वर हों, रंग हों, शिल्प हों, रेखाएं हों सब हमारी अनुभूति और संवेदनाओं का जरिया बनते हैं।
यह उद्गार प्रख्यात साहित्यकार ब्रजेश कानूनगो इंदौर ने डॉ. विष्णु भटनागर स्मृति आदरांजलि कार्यक्रम में व्यक्त किए। क्लब फनकार में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि विष्णु जी की रेखाओं में बहुत बारीकी, नक्काशी और महीन बनावट है। कभी-कभी उलझी उलझी भी लगती हैं। जटिलता में रहस्य छुपाये उनकी कृतियों में अनुशासन नहीं होता। महासागर के जीवन का विस्तार और विविधता होती है। कभी यह भी होता है कि किसी शिल्प या चित्र में कविता सुनाई देने लगती है तो कभी कविता कोई चित्र रच देती है। अध्यक्षीय उद्बोधन में सर्जक विवेक चौरसिया ने कहा कि कम साधन में बड़ा कारनामा करने का फन विष्णु भटनागर की तूलिका और कलम में स्पष्ट दिखाई देता है। मानव जीवन में सर्जन जिंदगी को अमर बना देता है। किताबें दस्तावेज का काम करती हैं। वह जीवन का दस्तावेज हो जाती हैं। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा विष्णु भटनागर के कविता संग्रह किरणों की सौगातें का विमोचन किया गया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. जफर महमूद ने किया। आभार प्रीति भटनागर ने किया। अतिथियों का स्वागत श्रीमती पूर्णिमा भटनागर, राधा कृष्ण वाडिया, आरपी शर्मा, जयेश त्रिवेदी, संतोष सुपेकर, ब्रज खरे आदि ने किया। इस अवसर पर डॉ. पुष्पा चौरसिया का सारस्वत सम्मान किया गया। डॉ. पुष्पा चौरसिया और डॉ. विष्णु भटनागर के चित्रों की तीन दिवसीय प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम में साहित्यकार प्रमोद त्रिवेदी, डॉ. पिलकेंद्र अरोरा, डॉ. श्रीकृष्ण जोशी, महेश ज्ञानी, प्रदीप सरल, चंदन यादव, पुष्कर बाहेती, प्रेम मनमौजी, शोभा खन्ना, सुरेश चौरसिया, दिलीप जैन, संतोष सुपेकर, अनिल देवलासी, नागदेव, योगेश पोरवाल, ब्रज खरे, शशांक दुबे, तरुणा जोशी, शैलेन्द्र जोशी, जगदीश नागर, अलका नागर, आर.सी. वट, अक्षय आमेरिया, प्रीति भटनागर सहित नगर के कलाकार और कला रसिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे।