उज्जैन । प्राचीन भारतीय कालगणना में वैदिक परम्परा विषय पर देश-प्रदेश के पंचांग कर्ता एवं वैदिक कालगणना परंपरा के विद्वान, खगोलविद, वैज्ञानिक, अध्येता गुरुवार को महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ,उज्जैन के सभागार में एकत्रित हुए।
संगोष्ठी में विद्वानों ने विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की गणना को लेकर सर्वसम्मिति से कहा कि भारतीय कालगणना विश्व की प्राचीनतम, सूक्ष्म, शुद्ध, त्रुटिरहित, प्रामाणिक एवं विश्वसनीय पद्धति है। काल/परिमाण की इस सर्वाधिक विश्वसनीय पद्धति का पुनरस्थापन विक्रमादित्य वैदिक घड़ी के रूप में उज्जैन में किया गया है। मुहूर्त, घटी, पल, कास्ता, प्रहर, दिन-रात, पक्ष, अयन, सम्वत्सर, दिव्यवर्ष, मन्वन्तर, युग, कल्प, ब्रम्हा वैदिक घड़ी के मुख्य आधार है। इस घड़ी को वैदिक काल गणना के समस्त घटकों को समवेत कर बनाया गया है। इसमें भारतीय पंचांग, विक्रम सम्वत् मास, ग्रह स्थिति, योग, भद्रा स्थिति, चंद्र स्थिति, पर्व, शुभाशुभ मुहूर्त, घटी, नक्षत्र, जयंती, व्रत, त्यौहार, चौघडिया, सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, आकाशस्थ, ग्रह, नक्षत्र, ग्रहों का परिभ्रमण समाहित है।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो. बालकृष्ण शर्मा, पूर्व कुलगुरु, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन थे। विशेष अतिथि के रूप में पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित, श्री राजेश कुशवाह, वरिष्ठ कार्यपरिषद सदस्य, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, डॉ. आरसी ठाकुर , निदेशक, अश्विनी शोध संस्थान, महिदपुर। अतिथि के रूप में पं. आनंद शंकर व्यास, वरिष्ठ ज्योतिर्विद, महामण्डलेश्वर मदन व्यास, उज्जैन, डॉ. निलिम्प त्रिपाठी, भोपाल, पं. कैलाशपति नायक, अशोक नगर, पं. भागीरथ जोशी, नीमच, ज्योतिषाचार्य अर्चना सरमण्डल, उज्जैन उपस्थित हुए। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री आरोह श्रीवास्तव, वैदिक घड़ी प्रणेता, लखनऊ थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. अर्पण भारद्वाज, कुलगुरु, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रीति पाण्डे, प्राचीन भारतीय इतिहास अध्ययनशाला, विक्रम वि.वि., उज्जैन तथा आभार वरिष्ठ कवि दिनेश दिग्गज द्वाराकिया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में विषय विस्तार डॉ. रमन सोलंकी, पुराविद्, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा किया गया।