उज्जैन, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का आधारशिला दिवस कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तदनुसार 20 अक्टूबर 2024, रविवार को मनाया गया। आधारशिला दिवस के शुभ अवसर पर प्रातः विक्रमादित्य मूर्ति शिल्प पर पुष्पांजलि एवं जलाभिषेक तथा कार्यपरिषद् कक्ष में स्थित सम्राट विक्रमादित्य एवं नवरत्नों के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। शलाका दीर्घा सभागार में विश्वविद्यालय के शलाका पुरुषों के छाया चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। विक्रम विश्वविद्यालय के स्वर्ण जंयती सभागृह में आयोजित संगोष्ठी में भोपाल से मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने ऑनलाइन माध्यम से सम्बोधित किया। सारस्वत अतिथि हैदराबाद के आध्यात्मिक मिशन के ग्लोबल हेड एवं आध्यात्मिक गुरु श्री कमलेश भाई पटेल, विशिष्ट अतिथि साहित्यकार पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित एवं कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेशसिंह कुशवाह थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने की। विश्वविद्यालय की स्थापना की पीठिका पर कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा और इतिहास पर पं उमाशंकर भट्ट ने प्रकाश डाला।
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अपने उद्बोधन में कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली उज्जयिनी में स्थित विक्रम विश्वविद्यालय की गौरव गाथा को विद्यार्थियों के बीच प्रचारित करें, जिससे विद्यार्थियों को भी जानकारी मिले कि वे किस महान विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे हैं। विश्वविद्यालय को और ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए सभी प्रयत्न करें। वर्तमान में विक्रम विश्वविद्यालय विश्व स्तर पर स्थापित हो, इसके लिए समग्र प्रयास आवश्यक हैं।मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अपने उद्बोधन में आगे कहा कि विश्वविद्यालय में कृषि से जुड़े नए पाठ्यक्रमों के साथ मेडिकल कॉलेज भी स्थापित हो, इसके लिए प्रयास किए जाएंगे।
आध्यात्मिक गुरु श्री कमलेश भाई पटेल, हैदराबाद ने कहा कि आध्यात्मिकता विशिष्ट अनुभूति होती है। ज्ञान से आगे यह अनुभूति आती है, जो महत्वपूर्ण है। इस अनुभूति से सच्चिदानंद का अनुभव होता है। गुरु वह है जिसने अनुभूति प्राप्त की हो। ईश्वरीय अनुभूति ज्ञान से ही सम्भव है। यह विश्वविद्यालय बहुत आगे बढ़े इसकी मंगलकामनाएं अर्पित करता हूँ।
विशिष्ट अतिथि डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित ने कहा कि उज्जैन प्राचीनकाल से शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। बाणभट्ट ने पुरातन काल में उज्जैन स्थित विद्या मंदिर की चर्चा की है। भोज के युग में भी सरस्वती कंठाभरण विश्वविद्यालय था, जहां समस्त विद्याओं का अध्यापन किया जाता था। युवा उत्साह के साथ विक्रम विश्वविद्यालय के गौरव को अनुभव करें।
कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज ने कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय इसकी स्थापना के लिए निर्धारित किए गए लक्ष्यों को पूरा करने के साथ निरन्तर नई दिशा में प्रगति करने के लिए तत्पर रहेगा। उन्होंने आधारशिला दिवस पर बधाई देते हुए विश्वविद्यालय के विकास के लिए सभी लोगों से सहयोग के लिए आह्वान किया।
कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेशसिंह कुशवाह ने कहा कि उज्जैन श्रीकृष्ण सांदीपनि भर्तृहरि की साधना स्थली के रूप में सुविख्यात है। यहाँ स्थित विक्रम विश्वविद्यालय का हमें गौरव होना चाहिए।
कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी विक्रम संवत 2013 तदनुसार 23 अक्टूबर, 1956 को विक्रम विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी गई थी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना की संकल्पना आजादी के आंदोलन के समानांतर की गई थी। विक्रम संवत की द्विसहस्राब्दी पर त्रिसूत्री कार्ययोजना तैयार की गई थी, जिसमें विक्रमादित्य के नाम पर विश्वविद्यालय एवं विक्रम कीर्ति मंदिर की स्थापना और तीन भाषाओं में विक्रम स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन सम्मिलित था। स्वाधीन भारत में विश्वविद्यालय की स्थापना का सपना 1956 में साकार हुआ।
अतिथियों को स्मृति चिह्न कुलगुरु प्रो अर्पण भारद्वाज, कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार शर्मा, कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, डीएसडब्ल्यू डॉ. एस के मिश्र ने अर्पित किए। प्रारंभ में स्वागत भाषण एवं कार्यक्रम की रूपरेखा डीएसडब्ल्यू प्रोफेसर एसके मिश्रा ने प्रस्तुत की। अतिथियों का स्वागत विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू डॉ. एस. के. मिश्र, प्रो कमलेश दशोरा, प्रो सन्दीप तिवारी, डॉ दर्शन दुबे आदि ने किया। प्रारंभ में विश्वविद्यालय का कुलगान डॉक्टर स्मिता सोलंकी, डॉक्टर प्रिया दुबे एवं डॉक्टर दर्शन मेहता ने किया। इसके पश्चात समस्त अतिथियों ने सरस्वती पूजन अर्चन किया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुति की गई। आधारशिला दिवस पर प्रातः काल स्वर्ण जयंती द्वार के सामने बनाए गए मंच पर अनेक विद्यार्थी कलाकारों ने नृत्य, काव्य, गीत आदि की प्रस्तुति दी। स्वर्ण जयंती सभागार में आयोजित कार्यक्रम में विद्यार्थियों रुचि सिंह, पलक बंसी, रोहिणी सालोरिया, भूमिका यादव, निशा यादव आदि ने समूह नृत्य की प्रस्तुति दी। बांसुरी वादन की प्रस्तुति विपिन मरमट ने दी। उनके साथ संगत रोहित मरमट, हिमांशु मेहर ने की। समारोह में प्रो गोपालकृष्ण शर्मा, प्रो बी के मेहता आदि सहित विश्वविद्यालय के अनेक पूर्व एवं वर्तमान विभागाध्यक्ष, शिक्षक, अधिकारी, प्रबुद्ध जनों, गणमान्य नागरिकों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया।
संचालन प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति अध्ययनशाला की संकाय सदस्य डॉ प्रीति पांडेय ने किया। आभार प्रदर्शन कुलसचिव डॉ अनिल कुमार शर्मा ने व्यक्त किया।