जनजातीय भाषा एवं बोलियों का अखिल भारतीय कवि सम्मेलन

उज्जैन, महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ द्वारा विक्रमादित्य, उनके युग, भारत उत्कर्ष, नवजागरण और भारत विद्या पर एकाग्र विक्रमोत्सव 2025 अंतर्गत लोकरंजन- जनजातीय भाषा एवं बोलियों का अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में जनजातीय भाषाओं समेत स्थानीय बोलियों- मालवी, हाड़ोती, मेवाड़ी, निमाड़ी, अवधी, बुन्देली के देश के जाने-माने कवियों ने भारतीय और प्राचीन कला, संस्कृति खासकर अपनी विरासत के सम्मान में रचनाओं को पढ़ा। इस मौके पर निमाड़ी में माँ सरस्वती का वंदन किया गया। मेवाड़ी और मालवी की कविताओं पर दर्शकों ने खूब ठहाके लगाए। इसके पूर्व विक्रम विश्वविद्यालय वरिष्ठ कार्य परिषद सदस्य राजेश सिंह कुशवाह, कवि दिनेश दिग्गज, पुराविद डॉ. रमण सोलंकी ने अथिति कवियों का स्वागत किया। इस अवसर पर गीतकार दुर्गादान सिंह गौड़ का अभिनंदन पत्र प्रदान पर सम्मानित किया गया।
राजस्थान के कोटा से पधारे गीतकार दुर्गादान सिंह गौड़ जिन्हें हाड़ोती का नीरज कहा जाता है, उन्होंने हाड़ोती में गीत और गजल प्रस्तुत किये। उन्होंने पढ़ा मीठा गीत जवानी मीठी मीठा ढोला मारू,
आ है म्हारी चांद कंवर थने हिवडे बीच उतारू। मंच पर उदरपुर के दिनेश बंटी ने मेवाड़ी रचनाओं से सभी को हँसाया। उन्होंने रचनाओं में कहा कई करां जी, जी रियां हाँ। पर जीणो, मरबा रे समान है। या बात वे लोग जाणै जी को मैरिज हाल क पास मकान है। उठावना तीये की बैठक पर कहा म्हारा दादाजी के स्वर्गवास पर गांव का अस्यो छटा -छटाया आदमी बैठबा आया।थांको काम ई। गांव म कोई भी मर जावै। वांकै बैठबा जाबा को।
सनावद के दीपक पगारे निमाड़ी में कहते है बाबूजी तम सहेर म जाई न निमाड़ी खऽ भूली गया। बिराणी सी नातों जोड्यो न घर की माड़ी खऽ भूली गया।बाराबंकी के विकास बोखल ने अवधी में कहा जनता कै सब उत्साह औ जुनून चला गा। वादा रहै मई का पूरा जून चला गा। सोचित है हमरे क्षेत्र का विकास कब होई, बुधुआ चुनाव जीता हनीमून चला गा।
शाजापुर के अशोक नागर ने मंच को प्रणाम करते हुए कहा कि कंई भभी दादा की तबियत ठीक हुई? हां…. बीरा अबे आराम होयो है,आज तो थोड़ा चल्या भी था।अच्छा कां तक गया था? ठेका तक गया था। झाबुआ के गजेन्द्र आर्य ने भीली में अपनी कविताओं का पाठ किया। उन्होंने पढ़ा लुग लुगाई हगला हब। हाबरिया घाबरिया हुई ग्या रे। बईड बईड खोदरे खोदरे। टापरा टापरा हुई ग्या रे। सम्मेलन का संचालन उज्जैेन के कवि अशोक भाटी ने किया।