उज्जैन, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के विशेष प्रयासों से बीते कई वर्षों के आग्रह को मूर्त रुप मिला है। विक्रम विश्वविद्यालय अब सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाएगा । उल्लेखनीय है कि बीते कई वर्षों से विश्वविद्यालय का नाम अवंतिका के सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर किए जाने का आग्रह किया जा रहा था। विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद जैसे ही राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल की मुहर लगेगी वैसे ही इसकी पहचान वैश्विक हो जाएगी।
विक्रम विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेश सिंह कुशवाह और कुलगुरू प्रो अर्पण भारद्वाज ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा किए गए इस उल्लेखनीय कार्य को ऐतिहासिक बताते हुए मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल,समस्त विधायकों और विश्वविद्यालय के समस्त विद्यार्थियों को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया हैं ।
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने विगत 30 मार्च को विक्रम विश्वविद्यालय के 29 वें दीक्षांत समारोह में घोषणा की थी कि यह विश्वविद्यालय ,सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय के नाम से पहचाना जाएगा और इसके बाद तत्काल विक्रम विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य श्री राजेश सिंह कुशवाह ने पहल करके आपातकालीन बैठक बुलवाकर कुलगुरू प्रो अर्पण भारद्वाज की अध्यक्षता में विक्रम विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय करने का प्रस्ताव पारित करके राज्य शासन को प्रेषित किया था। इसके पश्चात मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव को पारित किया और विगत 4 अगस्त को विधानसभा में विधेयक पारित होने के बाद अब सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाएगा ।
उज्जैन अपनी प्राचीनता और समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। यह शिक्षा का एक प्राचीन केंद्र भी रहा है। इसलिए, स्वतंत्रता के बाद कई हस्तियों ने केंद्र सरकार से उज्जैन में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने का आग्रह किया था। साथ ही उनका प्रस्ताव था कि विश्वविद्यालय का नाम प्रसिद्ध शासक “विक्रमादित्य” के नाम पर रखा जाए। जब मध्यभारत राज्य अस्तित्व में आया, तो प्रस्तावित विक्रम विश्वविद्यालय के लिए उज्जैन को चुना गया।
विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना 1 मार्च 1957 को उज्जैन में हुई थी। विक्रम विश्वविद्यालय की आधार शिला भारत के तत्कालीन गृह मंत्री श्री गोविंद वल्लभ पंत द्वारा मंगलवार, कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्थी, विक्रमाब्द 2013 अर्थात 23 अक्टूबर 1956 को रखी गई थी। समारोह की अध्यक्षता मध्यभारत राज्य के राजप्रमुख स्वर्गीय जीवाजीराव सिंधिया ने की थी।
वर्ष 1956 में मध्य प्रदेश देश का नया राज्य बना और मध्यभारत को इसमें मिला दिया गया। इस प्रकार, विश्वविद्यालय से संबंधित अधिनियम में संशोधन करने की आवश्यकता महसूस की गई। परिणामस्वरूप विक्रम विश्वविद्यालय का संशोधित अधिनियम क्रमांक 13, 1957, 16 अगस्त 1957 को मध्य प्रदेश राजपत्र में प्रकाशित किया गया। समय-समय पर अधिनियम में कई परिवर्तन और संशोधन किए गए। 1964-65 और 1969-70 के दौरान क्रमशः इंदौर, ग्वालियर और भोपाल विश्वविद्यालयों के गठन के कारण विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में काफी कमी आई।
28 जून 1985 को मध्य प्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन करके उसे मध्य प्रदेश राजपत्र में प्रकाशित किया गया। उपरोक्त संशोधन के अनुसार, विश्वविद्यालय क्षेत्राधिकार को पुनः परिभाषित किया गया तथा उज्जैन संभाग के राजस्व जिलों अर्थात उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, नीमच, शाजापुर और देवास के अनुसार सीमांकित किया गया।
पिछले वर्षों में विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित दीक्षांत समारोहों को महान विद्वानों ने संबोधित किया था।
विश्वविद्यालय का नाम सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर रखें जाने के लिए विश्वविद्यालय के कुल सचिव डॉ. अनिल शर्मा, कार्य परिषद सदस्य श्री रूप पमनानी, श्रीमति मंजुषा मिमरोट, श्री वरूण गुप्ता, डॉ. संजय वर्मा, श्रीमति सुषमा निगवाल एवं विभिन्न संकायों के अध्यक्ष, अध्यापक गण एवं कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का आभार व्यक्त किया है ।