उज्जैन। सृष्टि के समस्त प्राणी सम्मान से जीने का अधिकार रखते हैं। भारतीय संस्कृति में मानव अधिकारों की स्थापना सबसे श्रीमद्भागवतगीता से मिलती है। मार्कण्डेय पुराण समस्त प्राणियों को भयमुक्त, भाईचारा, समता, स्नेह और आनंद की शुभकामना करता है। सभी मनुष्य समान भाव से उन्नति करें, सभी को सम्मान से जीने का अधिकार हो, भेदभाव रहित जीवन ही मानव अधिकार की गरिमा है। भारतीय संस्कृति सदियों से ‘वसुधैव कुटुंबकम् से ही संचालित हो रही है। विश्व में भारतीय संस्कृति इसलिए श्रेष्ठ रही है क्योंकि वह सर्वजन हिताय का संदेश दे रही है। भगवद्गीता में मानवाधिकार का स्वरूप व्यापक एवं सार्वभौम है। नैतिक, वैधानिक, मौलिक, सकारात्मक सभी अधिकार व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए ही है। विश्व के विभिन्न अधिकारों के संघर्ष के लिए ही डॉ. आम्बेडकर को जाना जाता है। वे वास्तविक रूप से मानवाधिकार के संरक्षक है। बाबा साहब का मानना था कि मानवाधिकार प्रत्येक व्यक्ति का नैसर्गिक अधिकार है, जिसका संबंध प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा से है। उन्होंने मानव अधिकारों को कानूनी प्रतिष्ठा दी है।
उक्त विचार उज्जैन पुलिस अधीक्षक सचिन शर्मा ने डॉ. आंबेडकर पीठ व कृषि विज्ञान अध्ययनशाला के संयुक्त आयोजन विश्व मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित डॉ. बीआर आंबेडकर मानवाधिकार के संरक्षक विषय पर व्याख्यान में व्यक्त किए।
सचिन शर्मा ने कहा कि अधिकारों का सौंदर्य कर्तव्य से, अनुशासन से, समभाव, समदृष्टि रखने से है। वर्तमान में हमें यह चिन्तन करना होगा कि हम क्या है, हमारी हमारे प्रति, समाज के प्रति, राष्ट्र के प्रति क्या जवाबदेही है? हमें अपने सीमित साधनों में, संसाधनों में अपनी चुनौतियों को स्वीकार करते हुए, अपने लिए, अपने परिवार के लिए, समाज राष्ट्र के लिए प्रतिबद्ध होना होगा। क्योंकि अधिकारों का सौंदर्य कर्त्तव्य से है। इतिहास वही बदलते हैं जो चुनौतियों को, संघर्ष को स्वीकार करते हैं। डॉ. आम्बेडकर ने विषम, विपरीत परिस्थितियों को अपने दृढ़ संकल्प, दृढ़ निश्चय, अनुशासन से उन परिस्थितियों को अपने समयानुकूल बनाकर अपनी योग्यता, परिश्रम से संविधान निर्माण का कार्य किया। बहुत आवश्यक अपने ध्येय, लक्ष्य को केन्द्र बनाकर समाज राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए माननीय कुलपति प्रो. अखिलेशकुमार पाण्डे ने कहा- विश्व मानव अधिकार दिवस २०२३ की थीम है- ‘स्वतंत्रता, समानता, न्याय है। अधिकार के साथ-साथ कर्त्तव्यबोध भी वर्तमान परिवेश की जरूरत है। कर्त्तव्य के बिना अधिकारों को परिभाषित नहीं किया जा सकता। स्वतंत्रता-स्वच्छंदता न हो इसका ध्यान रखना होगा। मानव अधिकार क्योंकि हमारे प्राकृतिक अधिकार हैं इसलिए बहुत आवश्यक है कि प्रकृति अर्थात् पर्यावरण की सुरक्षा भी हमारा दायित्व है। क्योंकि संपूर्ण पर्यावरण की सुरक्षा मानव अधिकार से जुड़ी है। बाबा साहेब का संपूर्ण चिंतन मानव अधिकार है और प्रगतिशील समाज की स्थापना का दर्शन है। हमें हमारे संवैधानिक अधिकारों से अधिक मौलिक कर्त्तव्यों पर केन्द्रित होना, कार्य संस्कृति को समृद्ध करना है। अधिकारों, कानूनों का दुरुपयोग नहीं सद्पयोग कर समाज, राष्ट्र को विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।