उज्जैन, दो छोटे साहिबजादे ,बाबा फतह सिंघ जी (आयु 7 वर्ष ) , एवं बाबा जोरावर सिंघ जी ( आयु 9 वर्ष ) की विलक्षण शहादत: 27 दिसंबर l दीवार में” जिंदा चुनवा कर” बलिदान कर दिया गया! जत्थेदार सुरेंद्र सिंह अरोरा, सिख समाज के संरक्षक इकबाल सिंह गांधी ने बताया कि मध्य प्रदेश शासन , संस्कृति विभाग , मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद एवं पंजाबी साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा “वीर बाल दिवस ” के अवसर पर श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी के चारों साहिबजादो एवं माता गुजरी जी द्वारा धर्म, राष्ट्र रक्षा हेतु शहादत पर केंद्रित ऐतिहासिक आयोजन “दास्तान -ए-शहादत ” नाटक की प्रस्तुति 27 दिसंबर को शाम को 6:00 बजे पंडित सूर्यनारायण सभागृह ,कालिदास अकादमी उज्जैन में किया जा रहा है l संचालन सुखवर रंग मंच पटियाला द्वारा किया जाएगा l पंजाबी साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश शासन ,संस्कृति विभाग भोपाल के निदेशक इंद्रजीत सिंह खनूजा के मार्गदर्शन में ऐतिहासिक आयोजन किया जा रहा है l
सिख समाज के संभागीय प्रवक्ता एस एस नारंग ने बताया कि सिख पंथ प्रेम-भावना का पंथ है इस पद पर चलने वाले सदैव बड़े से बड़े त्याग ,शहादत हेतु तत्पर रहते हैं l यह श्री गुरु नानक देव जी साहब का पूर्व घोषित आदेश है lगुरु साहिबान ने निर्भय होकर धार्मिक मूल्यों की रक्षा हेतु शहादत दी, सिखों को भी शहादत देना सिखाया l धर्म आत्म-शोधन व ध्यान-का विषय है l जीवन न्योछावर कर देना विषम, परिस्थितियों को अनुकूल करना, अधर्म को परास्त करना, धर्म की प्रतिष्ठा स्थापित करना और मानव इतिहास को गौरवशाली बनाना शहादत के आवश्यक तत्व है जो दुर्लभ ही प्रकट होते हैं l
भारत के इतिहास में बलिदान का यह प्रसंग अद्वितीय है । सिख इतिहास इस दृष्टि से सर्वाधिक समृद्ध इतिहास है l सभी सिख शहादते अद्भुत है l किंतु कतिपय शहादते ऐसी हैं जो ना कभी भूतकाल में हुई है और ना भविष्य मैं संभावित है l इन स्वर्णिम शहादतों का स्मरण करते हुए अग्रिम पंक्ति में श्री गुरु गोबिंदसिंह जी के 4 साहिबजादो की बहादुरी का विशिष्ट स्थान सदैव सुरक्षित रहने वाला है l श्री गुरु गोविंद सिंघ साहिब जी के प्यारे दुलारे छोटे साहिबजादौ बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह जी द्वारा बाल्यावस्था में दी गई शहादत को याद कर आज भी हर हृदय दर्द से भर उठता है हर आंख में आंसू भर आते हैं हंसने खेलने वाली बाल्यावस्था में उन्होंने जिस दृढ़ संकल्प, अदम्य साहस ,दृढ़ निश्चय और निडरता का परिचय दिया इसका उदाहरण दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं मिलता है!
माता गुजरी जी और दो छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंघ जी (आयु 9 वर्ष जी), और बाबा फतह सिंह जी (आयु 7 वर्ष ) को तत्कालीन शासक की सेना ने कैद कर लिया। उन्हें ” सरहिंद “में कैद कर अनेक यातनाएं दी गई और अंत में 9 और 7 वर्ष के छोटे साहिबजादों को “दीवार में” जिंदा चुनवा कर बलिदान ” कर दिया गया। और माता जी को सरहिंद के ठंडे बुर्ज से नीचे फेंक कर बलिदान किया गया ।
दोनों छोटे साहिबजादो की शहादत उम्र के तकाजे से शहादत बा -कमाल एवं बेमिसाल थी l शत्रु भांति भांति प्रकार के लालच ,बहकावे आदि देखकर थक गए परंतु उनके हौसले फिर भी बुलंद रहे l
बाबा त्रिलोचन सिंह सरपंच , दलजीत सिंह अरोड़ा, चरणजीत सिंह कालरा, संरक्षक इकबाल सिंह गांधी, एस एस नारंग,आत्मा सिंह विग, राजा कालरा, सुरजीत सिंह डंग, जसविंदर सिंह ठकराल, प्रधान ग्रंथि सुरजीतसिंह ,
महेंद्पाल सिंह विग ने समूह संगत से पूर्ण श्रद्धा एवं समर्पण के साथ मनाने का निवेदन किया है!